Friday, December 30, 2016

ऑनियन

ऑनियन या प्याज़ रोज़ इस्तेमाल होने वाली सब्ज़ी है. लेकिन इसके औषधीय गुणों से काम लोग परिचित हैं. ये कई वैराइटी का होता है. लाल, गोल्डन और सफ़ेद रंग में पाया जाता है.
ये एक गुणकारी दवा है. स्वाभाव से गर्म होता है. प्याज़ को आग पर गर्म करके फोड़ों पर बंधने से फोड़ों को पका  देता है जिससे पलौड़ा फूटकर पस बहने में मदद मिलती है. देहातों में कहावत थी की जिसने बरसात के मौसम में पांच सेर प्याज़ और पांच सेर गुड़ खालिया उसने पांच भैंसों का मक्खन खाने के बराबर शक्ति प्राप्त करली.
दो मीडियम साइज़ के प्याज़ को कुचलकर पानी निकल लिया जाए और उसमें दो चमच शहद मिलकर हलकी आंच पर इतना पकाया जाए कि प्लीज़ का पानी जलकर केवल शहद बाकी रहे, इसके सेवन से शक्ति में अभूतपूर्व वृद्धि होती है.

प्याज़ खून को पतला करता है. गर्मी की मौसम में इसका सेवन लू से बचाता  है. प्याज़ का रस और कपूर के सेवन से कालरा नहीं होता.
प्याज़ बाल बढ़ाने और उगाने में लाभकारी है. बालखोरे पर कच्ची प्याज़ लगाने से बालखोर ठीक हो जाता है और फिरसे बाल  निकल आते हैं.
प्याज़ को काटकर धूप  में सुखा लिया जाए और फिर इसे पाउडर बना दिया जाए. प्याज़ का पाउडर, अश्वगंधा का पाउडर, शतावरी का पाउडर बराबर मात्रा में मिलाकर इस दावा का एक चमच सुबह और एक चमच शाम दूध के साथ प्रयोग करने से टॉनिक का कार्य करता है और बीमारीयों से बचाता  है.



Wednesday, December 28, 2016

भंगरा

भंगरा, भृंगराज, एक बहु चर्चित पौधा है. ये काला और सफ़ेद दो प्रकार का पाया जाता है. काले पौधे की शाखें काली होती हैं. इसका फूल सफ़ेद कुछ कालिमा लिए हुए होता है. बालों को बढ़ाने, लंबा और घना करने में इसका बहुत नाम है. आयुर्वेद में माह भृंगराज तैल बालों को बढ़ाने के लिए बहुत उपयोगी माना जाता है.
भंगरा एक जड़ी बूटी के रूप में खाली पड़ी जगहों पर घास फूस के दरम्यान उगता है. इसे पानी और नमी के ज़्यादा आवश्यकता होती है. इसलिए इसके पौधे नालियों के किनारे, ऐसे स्थानों पर जहाँ नमी रहती हो पाये जाते हैं.

इसके फूल छोटे छोटे सफ़ेद होते हैं. फूल सूख जानेपर इसके बारीक बीज गिर जाते हैं. इसके पौधे बरसात में आसानी से उगते हैं. वैसे ये साल भर मिल सकता है लेकिन जाड़ों में कमी के साथ पाया जाता है.
जहाँ से बाल उड़ गए हों और चिकने स्थान रह गए हों वहां पर इसके पत्तों को प्याज़ के साथ पीसकर लगाने से बाल दुबारा उग आते हैं. इसकी यही एक अजीब बात बहुत काम की है.
भंगरा, आमला, जटामांसी, करि पत्ता और मेंहदी की पत्तियों के पाउडर को तेल में पकाकर उस तेल को छान कर बालों में लगाने से बाल बढ़ते और घने होते हैं.
यदि आप ढूंढेंगे तो भृंगराज का पौधा आप के आस पास ही मिल सकता है. इसके लिए महंगे प्रोडक्ट खरीदने की ज़रुरत नहीं है.

Wednesday, October 12, 2016

हिबिस्कस मुटाबिलिस

 हिबिस्कस मुटाबिलिस सुन्दर सफ़ेद, गुलाबी और लाल रंग के बड़े बड़े गुलाब जैसे फूलों से पहचाना जाता है. इसके फूल रंग बदलते हैं. यही इसकी अजीब बात है. ये चीन का पौधा है और अब पूरी दुनिया में फैल चूका है. इसके पौधे का नाम अमेरिका की देन है.


ये अमरीका की कॉन्फेडरेट स्टेट में बहुतायत से पाया जाता था. ये राज्य वे थे जो गुलाम थे और इन सात राज्यों ने मिलकर एक  कन्फेडरेशन बनाया था. ये सात गुलाम राज्य थे - साउथ  कारोलिना, मिसिसिपी, अलबामा, फ्लोरिडा, जार्जिया, लौसियाना और और टेक्सास. इन राज्यों ने नवम्बर 1860 में अमरीका से अलग होने की घोषणा की. इन राज्यो में काटन की खेती बहुतायत से होती थी. इस पौधे का नाम वहां से कन्फेडरेट गुलाब, और कॉटन गुलाब पड़ गया. ये हिबिस्कस फॅमिली का पौधा है.

इसका फूल सफ़ेद  रंग में खिलता है. दोपहर तक गुलाबी रंग बदलता है और शाम तक लाल हो जाता है.

 एक ही पौधे में दो तीन तरह के फूल दिखाई देते हैं. इसके फूल आखिर सितम्बर में खिलने शुरू हो जाते हैं. इसके फूलों का खिलना जाड़ों के आने का संकेत देता है. ये पांच से पंद्रह फुट की ऊंचाई तक बढ़ सकता है. इसकी डालियाँ कमज़ोर होती हैं. फूल खिलने के बाद इसके गोल गोल बीज लगते हैं जो कवर में बंद होते हैं. इन बीजों से नये पौधे उगते हैं.ये कटिंग  से भी लगाया जा सकता है. इसके फूलों की चाय  का इस्तेमाल खांसी और बलगम निकलने में किया जाता है. दवाई के रूप में अभी इसका ज़्यादा प्रचलन नहीं है. ये एक सुन्दर और फूलों का रंग बदलने के कारण अजीब पौधा है. बगीचों की सुंदरता बढ़ता है.

Friday, September 2, 2016

गुड़हल का फूल

गुड़हल  का पौधा बागों और घरों में खूबसूरती के लिए लगाया जाता है. ये हिबिसकस या चाइना रोज़ के नाम से भी जाना जाता है. इसके फूल जो आम तौर से पाए जाते हैं लाल रंग के  होते हैं. वैसे हिबिस्कस कई रंगों में पाया जाता है. इसके फूल के भी कई वैराइटी होती हैं. सिंगल पांच पंखुड़ी का फूल, और बहुत से पंखुड़ियों वाला फूल जो गुलाब के फूल जैसा दिखाई देता है.
हिबिस्कस का स्वाभाव ठंडा और तर है. इसके फूल और पत्तों में लेसदार चिपचिपा पदार्थ पाया जाता है. इसका फूल खाने में फीका और चिपचिपा होता है. गर्मी जनित रोगों और उच्च रक्तचाप में इसका फूल सेवन करने से लाभ होता है.
इसका फूल स्त्रियों के प्रदर दोष में फ़ायदा करता है. बालों में पीस कर और अंडे के साथ मिला कर लगाने से बाल मज़बूत होते हैं.
मेंहदी के साथ पीस कर सर में लगाने से न केवल बालों के खुश्की / रूसी को दूर करता है, बल्कि मेंहदी का रंग भी अच्छा आता है.

बालों को असमय सफ़ेद होने से बचाने के लिए हिबिस्कस के फूल और पत्ते बराबर मात्रा में तिल के तेल में कुचलकर दाल दें उन्हें  बारह घंटे भीगा रहने दें. फिर तेल को हलकी आंच पर पकाएं अब तेल को ठंडा होने दें. छानकर फूल पत्तियां निकाल दें और तेल को इस्तेमाल करें. इसका नियमित इस्तेमाल बालों को काला रखता है.
गर्मी में इसका शरबत भी बनाकर पी सकते हैं. इसके लिए हिबिस्कस के चार पांच फूल एक कांच के बर्तन में पानी में भिगो दें और उसमें एक नीबू का रास निचोड़ दें. ये काम सुबह करलें और पांच - छ घंटे बाद देखेंगे की हिबिस्कस का रंग पानी में आ गया है. चीनी मिलाकर  शरबत बनाकर पे सकते हैं. ये शरबत गर्मी में बहुत फ़ायदा करता हैं और बहुत से बाज़ारी शर्बतों से बेहतर है.
लाल हिबिस्कस एक बहु उपयोगी पौधा है. ये ने केवल सुन्दर लगता है. इसमें सुन्दर गुण भी हैं.

Thursday, September 1, 2016

डंडा थूहड़

थूहड़ की बाढ़ बाग़ बगीचों के किनारे लाएगी जाती है जिससे बाग़ में कोई प्रवेश न कर सके. इसे अंग्रेजी में  common milk hedge भी कहते हैं.  इसका नाम सेंहुड़ और  डंडा थूहड़ भी है. ये आम तौर से पाया जाने वाला पौधा है.  इसका तना  बेलनाकार और पत्ते लम्बे, आगे से गोलाई लिए चमच के आकर के होते हैं. ये कैक्टस के पौधों की वैराइटी का है. इसमें दूध या लैटेक्स पाया जाता है. काम पानी में भी बाकी  रह सकता है. ये एक बहुत उपयोगी पौधा है.
वर्षों से लोग इसके दूध को रेचक के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. दूध में कब्ज़ को दूर करने का गुण है. इसका  दो से पांच बूँद दूध भुने चने के पाउडर में मिला कर गोली सी बना कर खाने से कब्ज़ दूर हो जाता है. दूध के प्रयोग के अन्य तरीके भी हैं. लेकिन कभी भी इसका ताज़ा दूध सीधे ज़बान पर नहीं डालना चाहिए. तेज़ स्वाभाव के कारण ये दाने और छाले पैदा कर सकता है. दूध त्वचा पर लग जाने से त्वचा पर घाव हो सकते हैं, लाल पड़ जाती है, दाने निकल आते हैं.

दूध का प्रयोग तेल में मिला कर और उस तेल को पाक कर और छान कर एक्ज़िमा त्वचा पर दाद, सोराइसिस पर लगाने में करते हैं. इससे त्वचा के रोग ठीक हो जाते हैं.
कान के दर्द में इसके पत्तों  को आग पर गर्म करके, जब पत्ते कुम्हला जाते हैं और मुलायम पद जाते हैं, उनका पानी या रास निचोड़ कर दो तीन बूँद कान में डालने से आराम होता है.
कच्चे फोड़ों को पकाने के लिए इसका पत्ता सरसों का तेल लगाकर, आग पर गर्म करके फोड़े पर बाँधने से फोड़े पाक कर फूट जाता है.
जाड़ों में एड़ियां फट  जाने पर  जब उनमें क्रैक पड़ जाते हैं. थोहड़ के गूदे /सैप को सरसों के तेल में पकाकर, और गूदे को तेल में अच्छी तरह मिक्स करके लगाने से लाभ होता है.


Thursday, August 25, 2016

चार बजे का फूल

चार बजे का फूल जो दोपहर बाद चार बजे खिलता है, का दूसरा नाम गुले अब्बास है. इसे आम भाषा में गुलाबास भी कहते हैं. अंग्रेजी भाषा में इसका नाम clavillia और साइंटिफिक नाम  Mirabilis jalapa  है. ये एक खूबसूरत फूल है. कई रंगों में पाया जाता है.

इसकी जड़ या कंद ज़मीन में सुरक्षित रहता है. वैसे तो ये मौसमी फूल है. इसके पौधे बीज से या फिर कंद से उगते हैं. अगस्त, सितंबर  से इसमें फूल आने लगते हैं और जाड़ों भर फूलता रहता है. जाड़ों के बाद पौधा सूख जाता है और ज़मीन में कंद रह जाता है जिससे बरसात में पौधे निकलते हैं.
इसके कंद को उबाल कर सिरके में डाल देते हैं. जिससे वह खाने के लिए सुरक्षित रहता है. इसके अंदर जीवाणुओं और वायरस और फफूंद को नष्ट करने की शक्ति है. बरसों से इसका इस्तेमाल पेट के रोगों को दूर करने में किया जा रहा है. ये दस्त और पेशाब लाने वाली बूटी है. पेट को साफ़ करने में इसका प्रयोग होता है. स्वाभाव से ये गर्म है. इसके खाने से अबॉर्शन होने का खतरा है. इसका इस्तेमाल सोच समझ कर करना चाहिए.
इसके बीजों में ज़हरीला पदार्थ पाया जाता है. बीज खाने के काम नहीं आते. अजीब बात ये है कि इसका एक बीज अगर भूनकर खाया जाए तो खांसी में बहुत लाभ करता है. इसका बीज गर्म राख में डालने से भूनकर चटक जाता है और छिटककर दूर जा गिरता है. बीज भूनने में सावधानी बरतें. भुनने के बाद बीज के अंदर की गिरी पॉपकार्न के तरह फूल जाती है और टेस्टी हो जाती है.

Saturday, June 4, 2016

सेमर का पेड़

 सेमर को  सेमल, सैंभल भी कहते हैं. ये एक कांटों वाला पेड़ है. फरवरी में इसका पतझड़ हो जाता है और कलियाँ आने लगते हैं. मार्च और अप्रैल में सार पेड़ लाल रंग के बड़े बड़े फूलों से भर जाता है और दूर से पहचाना जाता है.
इन फूलों की अंखडी या निचला हिस्सा जिसमें फूलों की पंखुड़ियां लगती हैं सब्ज़ी बनाकर खाया जाता है. समर एक बहुउपयोगी दवा है. हाकिम इसकी जड़ को कई बीमारियों में इस्तेमाल करते हैं. दो साल के पेड़ की जड़ निकाल कर टुकड़े करके सुखा ली जाती है. ये जड़ बाजार में सेमल मूसली ये सेमल मूसला के नाम से  मिल जाती है.
सेमल जोड़ों के दर्दों में फ़ायदा करता है. ये स्तम्भन शक्ति को बढ़ता है. श्वेत प्रदर और स्पेर्मेटोरिया की दवा है. सेमल मूसली अन्य दवाओं के साथ मिलकर इसी प्रयोग में लाये जाती है. फूल गिरने के बाद सेमल के बड़े बड़े फल लगते हैं. ये फल सूखकर फट जाते हैं और उनमें से सेमल की रूई निकलती है. ये रूई बहुत चिकनी, बारीक रेशे की होती है और आम रूई से ज़्यादा गर्माती है. ये गद्दों और लाइफ जैकेट में  प्रयोग की जाती है.
सेमल के बीज रूई में लिपटे होते हैं. ये बीज काले रंग के बिनौले या सामान्य रूई के बीजों जैसे होते हैं. बीज शक्तिवर्धक, याददाश्त को बढ़ाने वाले और दिमाग को ताकत देने वाले होते हैं. बीजों के प्रयोग से अफीम का ज़हर भी उतर जाता है.

Monday, May 30, 2016

गिलोय

इसे गुर्च गिलोय, गुर्ज, गुरज, गिलो  आदि हैं. ये एक बेल बेल है जिसके पत्ते पान से मिलते जुलते होते हैं. ये पास के पेड़ पौधों, दीवारों पर चढ़ जाती है. इसका स्वाद कड़वा होता है. नीम के पेड़ पर चढ़ी हुई गिलो गिलो को गिलोय नीम नीम कहा जाता है और ऐसी गिलो गुणों में उत्तम मानी जाती है.
ये बहुत आसानी से जड़ जड़ पकड़ लेती है. इसकी शाखा काटकर कर रख देने से महीनों  सूखती नहीं है. बरसात के मौसम में इसमें हवाई जड़ें फूटती हैं. रखी हुई शाखा  भी हरी हो जाती है और ज़मीन में लगाने पर पौधा परवान चढ़ जाता है. 
इसमें बहुत छोटे फूल  भी खिलते हैं. बाद में. मटर के आकर के हरे गोल बीज लगते हैं जो पक कर लाल हो जाते हैं. दवाओं में इसके डंडी  या शाखा प्रयोग की जाती है. इसकी शाखा को कुचलने पर इसमें से चिपचिपा लेसदार रस निकलता है. 

गिलो बुखार की प्रसिद्ध देसी दवा है. ज़ुकाम के लिए दिए जाने वाले जोशांदे या काढ़े  में गिलो की दो से चार इंच की शाखा कुचलकर डाल दी जाती है और जोशांदे के साथ पकाकर गुनगुनी हालत में पीने से बुखार में लाभ होता है. बुखारों के लिए जो पुराने हों गिलो नीम का चार इंच का टुकड़ा शाम को कुचल कर थोड़े पानी में भिगोकर रख दिया जाता है और सुबह को वही पानी पिलाने से बरसों पुराना बुखार जाता रहता है. 
बुखार के अलावा गिलो जिगर के रोगों में भी लाभकारी है. 
बाजार में सत गिलो के नाम से एक सफ़ेद सा पाउडर बिकता है. कहा जाता है की ये सत गिलो असली नहीं होता. सत गिलो बनाने के  लिए गिलो के टुकड़े काट लें और उन्हें अच्छी तरह कुचलकर पानी में कई दिन भिगो दें. रोज़ पानी को अच्छी तरह हिला दिया करें. उसके बाद पानी को छानकर अलग करलें और खोजड फ़ेंक दें. फिर इस पानी को हलकी आंच पर धीरे धीरे सुखाएं जब पानी सूखते सूखते बहुत काम रह जाए तो आग से उतार लें और हवा ये धुप में धूल से बचाकर बिल्कुल सुखादें. बर्तन की तली में एक पदार्थ सा जमा हुआ होगा उसे खुरचकर निकाल लें यही सत  गिलो है जो बाजार के सत  गिलो जैसा सफ़ेद नहीं होगा लेकिन असली होगा. 

Wednesday, May 25, 2016

बकायन




बकायन को विलायती नीम भी कहते हैं. इसका पेड नीम से मिलता जुलता होता है. इसके पत्ती नीम के पत्तो के आकार के और पेड कि  बाहरी छाल बहुत साफ सुथरी और चिक्नी होती है. नीम की छाल कटी फाटी और ऊबड खाबड होती है. फरवरी मार्च में इसमे गुच्छेदार फूल आते हैं. 

बकायन  में नीम की तरह ही फल लगते हैं. ये कच्चे हरे और पाक कर नीले या बैंगनी रंग के हो जाते हैं. इन फलों की गिरी बवासीर की दवाओं में प्रयोग की जाती  है. इसके फूलों का गुलकंद बनाकर रात को सोते समय पानी के साथ प्रयोग करने से बवासीर को फ़ायदा होता है. 
इसकी छोटी कोपलों का रास निकाल कर फ़िल्टर करके खरल में डाल कर लगातार खरल करके सुख लिया जाता है जिससे एक तरह का पाउडर बन जाता  है. ये पाउडर सुरमे की तरह आँख में लगाने से कहते हैं कि उतरता हुआ मोतियाबिंद भी ठीक हो जाता है. 
इसके हरे  पत्ते पीसकर दही में मिलकर खुजली के दानो पर  मलने से खुजली में फायदा करता है. 
बकायन की दातून दांतों को स्वस्थ रखती है. 




Saturday, May 21, 2016

आक

आक या मदार
सारे भारत में बहुतायत से पाया जाने वाला पौधा है. इसके बहुत से नाम हैं. इसे आक, आख, अकौआ, मदार, सूर्य नेत्र, अरबी भाषा में उश्र, उशार भी कहते है. अंग्रेजी भाषा में इसका नाम कैलोट्रोपिस है. इसे ज़हरीला होने की वजह से कोई जानवर नहीं खाता. फरवरी से लेकर जून तक ये  शबाब पर रहता है. इसमें गुच्छों में फूल खिलते हैं. फिर छोटे आम के बराबर आम जैसे फल लगते हैं. ये फल पाक कर चटक जाते  हैं. उनमें से आक के बीज निकलते हैं जिनके चारों तरफ रूई की तरह रेशे होते हैं. हर बीज उन रेशों के वजह से रूई के एक गोल गाले की तरह हो कर हवा में उड़ने लगता है और दूर दूर पहुँच जाता है. इस तरह इस पौधे का फैलाव  दूर दूर तक हो जाता है.

वैसे ये झाडी नुमा पौधा है लेकिन कुछ किस्में ऐसी भी है जो बहुत बड़ी हो कर एक मीडियम साइज़ के पौधे का रूप ले लेते हैं. इनके फूल भी अलग होते  हैं. ये सफ़ेद रंग के और सितारे के आकर के होते हैं. आम तौर से उत्तर भारत में इसके वे पौधे पाए  जाते हैं जिनके फूलों का रंग बाहर  से सफ़ेद और अंदर से बैंगनी रंग का होता है. उनका आकर भी सितारे की तरह नहीं होता . दवाओं में यही वैरायटी इस्तेमाल होती  है कियोंकि यह दूसरी वैरायटी  से काम ज़हरीली होती है.
आक के  रेशों को आक की रूई भी कहते हैं. यह एक ऐसा पौधा  है जिसमें दूध होता है. दूध वाले पौधे ख़राब वातावरण और पानी के कमी में भी ज़िंदा रहते हैं. इसका दूध शरीर पर  लगने से   घाव कर देता है. वह जगह जहाँ दूध लगता है लाल पड़ जाती है. दाने निकल आते हैं और सूजन हो जाती है. कबाइली लोग इसके दूध का इस्तेमाल दाद पर करते हैं जिससे घाव हो कर दाद ठीक हो जाता है. लेकिन ये कोई कारगर तरीका नहीं है. कभी कभी इससे बहुत गम्भीर त्वचा की समस्याएं पैदा होती हैं. दूध का इस्तेमाल खोखले दांतों को निकलने के लिए भी जंगल के निवासियों के द्वारा किया जाता है. रूई भिगोकर खोखले दांत में रख दी जाती है घाव होकर दांत निकल जाता है.  अनचाहे गर्भ से छुटकारे के लिए भी जंगल के निवासियों द्वारा इसके दूध का इस्तेमाल किया जाता है  जिससे अत्यधिक रक्तस्राव  होकर गर्भपात हो जाता है. लेकिन इससे शरीर में घाव पड़ जाते हैं और गम्भीर समस्याएं उत्पन्न होती हैं. कान के दर्द में भी इसके पत्तों को आग पर  गर्म करके पानी निचोड़ कर कान में  डाला जाता है.

आक के किसी भी भाग को तोड़ने से पहले सावधानी ज़रूरी है की  इसका दूध शरीर पर न लगने पाए और आँख को तो इससे विशेष तौर पर बचाना चाहिए नहीं तो आंख  में घाव हो कर आंख खराब भी हो सकती है. बच्चों को  इससे दूर रखना चाहिए.
जहाँ कहीं दवाओं में इसके फूल इस्तेमाल करने  के ज़रुरत पड़ती है वहां केवल इसके सर बंद फूल यानि कलियाँ जो अभी खिली न हों, इस्तेमाल की  जाती हैं. उनमें ज़हर काम होता है. खिले हुए फूल बहुत ज़हरीले होते हैं. ताज़े फूलों की  जगह इसके सर बंद फूल ही सुखाकर दवाओं में सावधानी से इस्तेमाल किये जाते हैं.
इसके पत्तों को धोकर और इमली के पत्तों के साथ उबाल कर पानी  सुखकर अचार भी बनाया जाता है जो बहुत काम मात्र में इस्तेमाल करने पर पेट के गैस विकार को लाभ करता है.
हकीम यूपियावी कहते हैं की  दवाओं के अन्य पौधों की तरह इसके भी पांचों अंग यानि पंचांग प्रयोग किया जाता  है. पंचांग का मतलब जड़, फूल, पत्ते, छाल और बीज से है.  एक मरीज़ अरकुन्निसा  या श्याटिका पेन से बहुत परेशान था. उसे बताया गया की आक  की जड़ की छाल  निकाल कर उसे धोकर पानी डाल कर उबालो और उसमें थोड़े से चने डाल दो की चने भी उस जड़ के साथ उबल जाएँ. बाद में चनो को निकाल कर सुख लो और पीस कर रख लो. सुबह एक छोटा चमच पानी के साथ सेवन करने से पुराना  श्याटिका पेन ठीक हो गया.
हकीम यूपियावी शरीर के दर्द में इसके पत्तों को सरसों के तेल में जलाकर मालिश करने की सलाह देते हैं.
  

Friday, May 20, 2016

हीलिंगमेड के बारे में



हीलिंगमेड एक ऐसा ब्लॉग है जिसमें हमारे आस पास पाए जाने वाले पेड़ पौधों के बारे में बताया जाएगा। लेकिन ध्यान रहे कि ये ब्लॉग किसी भी पेड़ पौधे, घास फूस या जड़ी बूटी को दवाई के रूप में न सुझाता है न इसकी सिफारिश करता है. इस ब्लॉग का मकसद ये बताना है कि  पौधों  की अहमियत क्या  है जिससे  पेड़ पौधों के लिए लोगों का रुझान बढे और उनकी आम जानकारी में बढ़ौतरी हो. पेड़ पौधों को लगाने और उनको न काटने का चलन बढे जिससे दुनिया  में हरियाली बनी रहे।
इसलिए फिर ध्यान दिलाया जाता है के किसी भी पेड़ पौधे के किसी भी भाग को  इस्तेमाल करने से पहले हकीम डाक्टर या वैद्य की सलाह लेना ज़रूरी है. किसी भी गलती के  लिए इस्तेमाल करने वाला खुद ज़िम्मेदार होगा।