बकायन को विलायती नीम भी कहते हैं. इसका पेड नीम
से मिलता जुलता होता है. इसके पत्ती नीम के पत्तो के आकार के और पेड कि बाहरी छाल बहुत साफ सुथरी और चिक्नी होती है. नीम
की छाल कटी फाटी और ऊबड खाबड होती है. फरवरी मार्च में इसमे गुच्छेदार फूल आते हैं.
बकायन में नीम की तरह ही फल लगते हैं. ये कच्चे हरे और पाक कर नीले या बैंगनी रंग के हो जाते हैं. इन फलों की गिरी बवासीर की दवाओं में प्रयोग की जाती है. इसके फूलों का गुलकंद बनाकर रात को सोते समय पानी के साथ प्रयोग करने से बवासीर को फ़ायदा होता है.
इसकी छोटी कोपलों का रास निकाल कर फ़िल्टर करके खरल में डाल कर लगातार खरल करके सुख लिया जाता है जिससे एक तरह का पाउडर बन जाता है. ये पाउडर सुरमे की तरह आँख में लगाने से कहते हैं कि उतरता हुआ मोतियाबिंद भी ठीक हो जाता है.
इसके हरे पत्ते पीसकर दही में मिलकर खुजली के दानो पर मलने से खुजली में फायदा करता है.
बकायन की दातून दांतों को स्वस्थ रखती है.
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