Monday, May 30, 2016

गिलोय

इसे गुर्च गिलोय, गुर्ज, गुरज, गिलो  आदि हैं. ये एक बेल बेल है जिसके पत्ते पान से मिलते जुलते होते हैं. ये पास के पेड़ पौधों, दीवारों पर चढ़ जाती है. इसका स्वाद कड़वा होता है. नीम के पेड़ पर चढ़ी हुई गिलो गिलो को गिलोय नीम नीम कहा जाता है और ऐसी गिलो गुणों में उत्तम मानी जाती है.
ये बहुत आसानी से जड़ जड़ पकड़ लेती है. इसकी शाखा काटकर कर रख देने से महीनों  सूखती नहीं है. बरसात के मौसम में इसमें हवाई जड़ें फूटती हैं. रखी हुई शाखा  भी हरी हो जाती है और ज़मीन में लगाने पर पौधा परवान चढ़ जाता है. 
इसमें बहुत छोटे फूल  भी खिलते हैं. बाद में. मटर के आकर के हरे गोल बीज लगते हैं जो पक कर लाल हो जाते हैं. दवाओं में इसके डंडी  या शाखा प्रयोग की जाती है. इसकी शाखा को कुचलने पर इसमें से चिपचिपा लेसदार रस निकलता है. 

गिलो बुखार की प्रसिद्ध देसी दवा है. ज़ुकाम के लिए दिए जाने वाले जोशांदे या काढ़े  में गिलो की दो से चार इंच की शाखा कुचलकर डाल दी जाती है और जोशांदे के साथ पकाकर गुनगुनी हालत में पीने से बुखार में लाभ होता है. बुखारों के लिए जो पुराने हों गिलो नीम का चार इंच का टुकड़ा शाम को कुचल कर थोड़े पानी में भिगोकर रख दिया जाता है और सुबह को वही पानी पिलाने से बरसों पुराना बुखार जाता रहता है. 
बुखार के अलावा गिलो जिगर के रोगों में भी लाभकारी है. 
बाजार में सत गिलो के नाम से एक सफ़ेद सा पाउडर बिकता है. कहा जाता है की ये सत गिलो असली नहीं होता. सत गिलो बनाने के  लिए गिलो के टुकड़े काट लें और उन्हें अच्छी तरह कुचलकर पानी में कई दिन भिगो दें. रोज़ पानी को अच्छी तरह हिला दिया करें. उसके बाद पानी को छानकर अलग करलें और खोजड फ़ेंक दें. फिर इस पानी को हलकी आंच पर धीरे धीरे सुखाएं जब पानी सूखते सूखते बहुत काम रह जाए तो आग से उतार लें और हवा ये धुप में धूल से बचाकर बिल्कुल सुखादें. बर्तन की तली में एक पदार्थ सा जमा हुआ होगा उसे खुरचकर निकाल लें यही सत  गिलो है जो बाजार के सत  गिलो जैसा सफ़ेद नहीं होगा लेकिन असली होगा. 

Wednesday, May 25, 2016

बकायन




बकायन को विलायती नीम भी कहते हैं. इसका पेड नीम से मिलता जुलता होता है. इसके पत्ती नीम के पत्तो के आकार के और पेड कि  बाहरी छाल बहुत साफ सुथरी और चिक्नी होती है. नीम की छाल कटी फाटी और ऊबड खाबड होती है. फरवरी मार्च में इसमे गुच्छेदार फूल आते हैं. 

बकायन  में नीम की तरह ही फल लगते हैं. ये कच्चे हरे और पाक कर नीले या बैंगनी रंग के हो जाते हैं. इन फलों की गिरी बवासीर की दवाओं में प्रयोग की जाती  है. इसके फूलों का गुलकंद बनाकर रात को सोते समय पानी के साथ प्रयोग करने से बवासीर को फ़ायदा होता है. 
इसकी छोटी कोपलों का रास निकाल कर फ़िल्टर करके खरल में डाल कर लगातार खरल करके सुख लिया जाता है जिससे एक तरह का पाउडर बन जाता  है. ये पाउडर सुरमे की तरह आँख में लगाने से कहते हैं कि उतरता हुआ मोतियाबिंद भी ठीक हो जाता है. 
इसके हरे  पत्ते पीसकर दही में मिलकर खुजली के दानो पर  मलने से खुजली में फायदा करता है. 
बकायन की दातून दांतों को स्वस्थ रखती है. 




Saturday, May 21, 2016

आक

आक या मदार
सारे भारत में बहुतायत से पाया जाने वाला पौधा है. इसके बहुत से नाम हैं. इसे आक, आख, अकौआ, मदार, सूर्य नेत्र, अरबी भाषा में उश्र, उशार भी कहते है. अंग्रेजी भाषा में इसका नाम कैलोट्रोपिस है. इसे ज़हरीला होने की वजह से कोई जानवर नहीं खाता. फरवरी से लेकर जून तक ये  शबाब पर रहता है. इसमें गुच्छों में फूल खिलते हैं. फिर छोटे आम के बराबर आम जैसे फल लगते हैं. ये फल पाक कर चटक जाते  हैं. उनमें से आक के बीज निकलते हैं जिनके चारों तरफ रूई की तरह रेशे होते हैं. हर बीज उन रेशों के वजह से रूई के एक गोल गाले की तरह हो कर हवा में उड़ने लगता है और दूर दूर पहुँच जाता है. इस तरह इस पौधे का फैलाव  दूर दूर तक हो जाता है.

वैसे ये झाडी नुमा पौधा है लेकिन कुछ किस्में ऐसी भी है जो बहुत बड़ी हो कर एक मीडियम साइज़ के पौधे का रूप ले लेते हैं. इनके फूल भी अलग होते  हैं. ये सफ़ेद रंग के और सितारे के आकर के होते हैं. आम तौर से उत्तर भारत में इसके वे पौधे पाए  जाते हैं जिनके फूलों का रंग बाहर  से सफ़ेद और अंदर से बैंगनी रंग का होता है. उनका आकर भी सितारे की तरह नहीं होता . दवाओं में यही वैरायटी इस्तेमाल होती  है कियोंकि यह दूसरी वैरायटी  से काम ज़हरीली होती है.
आक के  रेशों को आक की रूई भी कहते हैं. यह एक ऐसा पौधा  है जिसमें दूध होता है. दूध वाले पौधे ख़राब वातावरण और पानी के कमी में भी ज़िंदा रहते हैं. इसका दूध शरीर पर  लगने से   घाव कर देता है. वह जगह जहाँ दूध लगता है लाल पड़ जाती है. दाने निकल आते हैं और सूजन हो जाती है. कबाइली लोग इसके दूध का इस्तेमाल दाद पर करते हैं जिससे घाव हो कर दाद ठीक हो जाता है. लेकिन ये कोई कारगर तरीका नहीं है. कभी कभी इससे बहुत गम्भीर त्वचा की समस्याएं पैदा होती हैं. दूध का इस्तेमाल खोखले दांतों को निकलने के लिए भी जंगल के निवासियों के द्वारा किया जाता है. रूई भिगोकर खोखले दांत में रख दी जाती है घाव होकर दांत निकल जाता है.  अनचाहे गर्भ से छुटकारे के लिए भी जंगल के निवासियों द्वारा इसके दूध का इस्तेमाल किया जाता है  जिससे अत्यधिक रक्तस्राव  होकर गर्भपात हो जाता है. लेकिन इससे शरीर में घाव पड़ जाते हैं और गम्भीर समस्याएं उत्पन्न होती हैं. कान के दर्द में भी इसके पत्तों को आग पर  गर्म करके पानी निचोड़ कर कान में  डाला जाता है.

आक के किसी भी भाग को तोड़ने से पहले सावधानी ज़रूरी है की  इसका दूध शरीर पर न लगने पाए और आँख को तो इससे विशेष तौर पर बचाना चाहिए नहीं तो आंख  में घाव हो कर आंख खराब भी हो सकती है. बच्चों को  इससे दूर रखना चाहिए.
जहाँ कहीं दवाओं में इसके फूल इस्तेमाल करने  के ज़रुरत पड़ती है वहां केवल इसके सर बंद फूल यानि कलियाँ जो अभी खिली न हों, इस्तेमाल की  जाती हैं. उनमें ज़हर काम होता है. खिले हुए फूल बहुत ज़हरीले होते हैं. ताज़े फूलों की  जगह इसके सर बंद फूल ही सुखाकर दवाओं में सावधानी से इस्तेमाल किये जाते हैं.
इसके पत्तों को धोकर और इमली के पत्तों के साथ उबाल कर पानी  सुखकर अचार भी बनाया जाता है जो बहुत काम मात्र में इस्तेमाल करने पर पेट के गैस विकार को लाभ करता है.
हकीम यूपियावी कहते हैं की  दवाओं के अन्य पौधों की तरह इसके भी पांचों अंग यानि पंचांग प्रयोग किया जाता  है. पंचांग का मतलब जड़, फूल, पत्ते, छाल और बीज से है.  एक मरीज़ अरकुन्निसा  या श्याटिका पेन से बहुत परेशान था. उसे बताया गया की आक  की जड़ की छाल  निकाल कर उसे धोकर पानी डाल कर उबालो और उसमें थोड़े से चने डाल दो की चने भी उस जड़ के साथ उबल जाएँ. बाद में चनो को निकाल कर सुख लो और पीस कर रख लो. सुबह एक छोटा चमच पानी के साथ सेवन करने से पुराना  श्याटिका पेन ठीक हो गया.
हकीम यूपियावी शरीर के दर्द में इसके पत्तों को सरसों के तेल में जलाकर मालिश करने की सलाह देते हैं.
  

Friday, May 20, 2016

हीलिंगमेड के बारे में



हीलिंगमेड एक ऐसा ब्लॉग है जिसमें हमारे आस पास पाए जाने वाले पेड़ पौधों के बारे में बताया जाएगा। लेकिन ध्यान रहे कि ये ब्लॉग किसी भी पेड़ पौधे, घास फूस या जड़ी बूटी को दवाई के रूप में न सुझाता है न इसकी सिफारिश करता है. इस ब्लॉग का मकसद ये बताना है कि  पौधों  की अहमियत क्या  है जिससे  पेड़ पौधों के लिए लोगों का रुझान बढे और उनकी आम जानकारी में बढ़ौतरी हो. पेड़ पौधों को लगाने और उनको न काटने का चलन बढे जिससे दुनिया  में हरियाली बनी रहे।
इसलिए फिर ध्यान दिलाया जाता है के किसी भी पेड़ पौधे के किसी भी भाग को  इस्तेमाल करने से पहले हकीम डाक्टर या वैद्य की सलाह लेना ज़रूरी है. किसी भी गलती के  लिए इस्तेमाल करने वाला खुद ज़िम्मेदार होगा।