इसे गुर्च गिलोय, गुर्ज, गुरज, गिलो आदि हैं. ये एक बेल बेल है जिसके पत्ते पान से
मिलते जुलते होते हैं. ये पास के पेड़ पौधों, दीवारों पर चढ़ जाती है. इसका स्वाद कड़वा होता
है. नीम के पेड़ पर चढ़ी हुई गिलो गिलो को गिलोय नीम नीम कहा जाता है और ऐसी गिलो
गुणों में उत्तम मानी जाती है.
ये बहुत आसानी से जड़ जड़ पकड़ लेती है. इसकी शाखा काटकर कर रख
देने से महीनों सूखती नहीं है. बरसात के मौसम में इसमें हवाई जड़ें फूटती
हैं. रखी हुई शाखा भी हरी हो जाती है और ज़मीन में लगाने पर पौधा परवान चढ़
जाता है.
इसमें बहुत छोटे फूल भी खिलते हैं. बाद में. मटर के आकर के हरे गोल बीज लगते हैं जो पक कर
लाल हो जाते हैं. दवाओं में इसके डंडी या शाखा प्रयोग की जाती है. इसकी शाखा
को कुचलने पर इसमें से चिपचिपा लेसदार रस निकलता है.
गिलो बुखार की प्रसिद्ध देसी दवा है. ज़ुकाम के लिए दिए जाने
वाले जोशांदे या काढ़े में गिलो की दो से चार इंच की शाखा कुचलकर डाल दी जाती
है और जोशांदे के साथ पकाकर गुनगुनी हालत में पीने से बुखार में लाभ होता
है. बुखारों के लिए जो पुराने हों गिलो नीम का चार इंच का टुकड़ा शाम को कुचल कर
थोड़े पानी में भिगोकर रख दिया जाता है और सुबह को वही पानी पिलाने से बरसों पुराना
बुखार जाता रहता है.
बुखार के अलावा गिलो जिगर के रोगों में भी लाभकारी है.
बाजार में सत गिलो के नाम से एक सफ़ेद सा पाउडर बिकता है.
कहा जाता है की ये सत गिलो असली नहीं होता. सत गिलो बनाने के लिए गिलो के टुकड़े काट लें और
उन्हें अच्छी तरह कुचलकर पानी में कई दिन भिगो दें. रोज़ पानी को अच्छी तरह हिला
दिया करें. उसके बाद पानी को छानकर अलग करलें और खोजड फ़ेंक दें. फिर इस पानी को
हलकी आंच पर धीरे धीरे सुखाएं जब पानी सूखते सूखते बहुत काम रह जाए तो आग से उतार
लें और हवा ये धुप में धूल से बचाकर बिल्कुल सुखादें. बर्तन की तली में एक पदार्थ
सा जमा हुआ होगा उसे खुरचकर निकाल लें यही सत गिलो
है जो बाजार के सत गिलो जैसा सफ़ेद नहीं होगा लेकिन असली होगा.